Ishwar Chandra Vidyasagar
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
Hello students I have shared Ishwar Chandra Vidyasagar Jivani Rashtrabhasha ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जीवनी in Hindi and English.
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की जीवनी का सारांश लिखिए । Write a summary of the biography of Ishwar Chandra Vidyasagar.
ईश्वरचन्द्र का जन्म बंगाल के एक निर्धन परिवार में हुआ था । उनके पिता एक गरीब ब्राह्मण थे । इसलिए वे ईश्वरचन्द्र की पढ़ाई की कोई उचित व्यवस्था नहीं कर सके । ईश्वरचन्द्र बहुत बुद्धिमान थे । उनकी स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि वे जिस पाठ को एक बार सुन लेते थे उसे कभी नहीं भूलते थे । ईश्वरचन्द्र के पिता कलकत्ते में एक साधारण नौकरी करते थे । अंग्रेजी स्कूल की मोटी फीस देकर पढ़ाना उनसे संभव नहीं था, पर उनकी बड़ी इच्छा थी कि बेटा पढ़–लिखकर विद्वान बने। इसलिए उन्होंने ईश्वरचन्द्र को पढ़ने के लिए संस्कृत पाठशाला में भेज दिया। 11 वर्ष की आयु में उन्होंने व्याकरण की परीक्षा तथा 16 वर्ष की आयु में उन्होंने साहित्य और अलंकार की पढ़ाई समाप्त कर ली। इसके बाद वे वेदों, स्मृतियों और दर्शन–ग्रंथों को पढ़कर सब शास्त्रों के ज्ञाता बन गये। उनकी विद्वत्ता देखकर जनता ने उन्हें ‘विद्यासागर ‘ की उपाधि दी। तब से वे ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के नाम से प्रसिद्ध हो गयें ।
Ishwarchandra was born in a poor family of Bengal. His father was a poor Brahmin. That’s why they could not make any proper arrangement for Ishwarchandra’s education. Ishwarchandra was very intelligent. His memory power was so sharp that he never forgot the lesson he once heard. Ishwarchandra’s father used to do a simple job in Calcutta. It was not possible for him to teach by paying the hefty fees of English school, but he had a great desire that his son should become a scholar after studying. That’s why he sent Ishwarchandra to Sanskrit school to study. At the age of 11, he completed the examination of grammar and at the age of 16, he completed the study of literature and rhetoric. After this, he became the knower of all the scriptures by reading Vedas, Smritis and philosophy books. Seeing his scholarship, the public gave him the title of ‘Vidyasagar’. Since then he became famous by the name of Ishwarchandra Vidyasagar.
विद्यासागर अपनी पढ़ाई की समाप्ति के बाद कलकत्ते के संस्कृत कॉलेज में अध्यापक नियुक्त हुए। वे एक योग्य व मेहनती अध्यापक थे । इसलिए कॉलेज के अध्यापक और सब छात्र उनका बड़ा आदर एवं सम्मान करते थे। उनकी योग्यता से प्रभावित होकर सरकार ने उन्हें कॉलेज का प्रधान अध्यापक बना दिया ।
Vidyasagar was appointed a teacher in the Sanskrit College of Calcutta after the completion of his studies. He was an able and hardworking teacher. That’s why the college teachers and all the students used to respect and respect him a lot. Impressed by his ability, the government made him the head teacher of the college.
प्रधान अध्यापक के पद से उन्होंने अपना कार्य बहुत अच्छी तरह निभाया। वे समय पालन और अनुशासन पर बहुत ध्यान देते थे ।
He did his work very well from the post of head teacher. He paid a lot of attention to punctuality and discipline.
विद्यासागर बडे स्वाभिमानी, निर्भीक और स्वतंत्र विचार के व्यक्ति थे । बड़े–बड़े अफसरों से भी नहीं डरते थे। एक बार विभाग के निरीक्षक से किसी बात पर उनका झगड़ा हो गया। इस पर उन्होंने कॉलेज की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। उनका यह मानना था कि ऐसी नौकरी नहीं करनी चाहिए जिसमें इज़्ज़त चली जाय ।
Vidyasagar was a man of great self-respect, fearlessness and independent thinking. He was not even afraid of big officers. Once he had a fight with the inspector of the department over some issue. On this he resigned from the college job. He believed that such a job should not be done in which respect is lost.
विद्यासागर इतने बड़े पद पर होने पर भी बहुत सरल रहते थे, साधारण कपड़े पहनते थे और सबके साथ सरलता से व्यवहार करते थे। उनका कहना था कि ‘हमें अपना काम स्वयं करना चाहिए। दूसरों पर निर्भर रहना उचित नहीं है। यही सबसे बडी शिक्षा है।‘ विद्यासागर विद्या के सागर थे ही, वे दया के भी धनी थे। वे जितने बड़े विद्वान थे उतने ही बड़े दयालु और उदार भी थे। दुखियों का दुःख देखकर उनका हृदय पिघल जाता था।
Vidyasagar lived very simple even after being in such a big position, used to wear simple clothes and behaved easily with everyone. He used to say that ‘we should do our own work’. It is not right to depend on others. This is the biggest education. Vidyasagar was not only an ocean of knowledge, he was also rich in kindness. He was as great a scholar as he was kind and generous. Seeing the sorrow of the suffering, his heart used to melt.
सरकारी नौकरी से इस्तिफा देने के बाद विद्यासागर साहित्य और समाज की सेवा में अपने दिन बिताने लगे। उन्होंने संस्कृत और बंगला में अनेक पुस्तकें लिखीं तथा उनके प्रयत्न से बंगाल में सैकड़ों स्कूलों की स्थापना हुई। स्कूलों में बालक–बालिकाओं को निःशुल्क शिक्षा दी जाने लगी।
After resigning from the government job, Vidyasagar started spending his days in the service of literature and society. He wrote many books in Sanskrit and Bengali and due to his efforts hundreds of schools were established in Bengal. Boys and girls were given free education in schools.
विद्यासागर एक अच्छे समाज सुधारक भी थे। वे विधवा–विवाह के बहुत बड़े समर्थक थे। बंगाल के लोगों ने इसका बहुत विरोध किया, पर वे अपनी बात पर अडिग रहे ।
Vidyasagar was also a good social reformer. He was a big supporter of widow-marriage. The people of Bengal opposed it a lot, but he remained firm on their point.
संस्कृत में एक कहावत है-“विद्या ददाति विनयं‘ अर्थात् ‘विद्वान को सदा विनयशील होना चाहिए।‘ यह गुण विद्यासागर में पूर्ण रूप से विद्यमान था।
There is a saying in Sanskrit – “Vidya Dadati Vinayam” which means ‘the scholar should always be polite’. This quality was fully present in Vidyasagar.