Pandit Madan Mohan Malviya
पंडित मदनमोहन मालवीय
Hello students I have shared Pandit Madan Mohan Malviya Jivani Rashtrabhasha पंडित मदनमोहन मालवीय जीवनी in Hindi and English.
पंडित मदनमोहन मालवीय की जीवनी का सारांश लिखिए। Write a summary of the biography of Pandit Madan Mohan Malaviya.
पंडित मदनमोहन मालवीय बड़े ही धार्मिक, त्यागी, देश भक्त और विद्याप्रेमी थे । वे हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति का बहुत बड़े समर्थक और पोषक थे। वे एक आदर्श पुरुष, विनम्र और भगवान के सच्चे भक्त थे। वे हिंदू धर्म के कट्टर समर्थक होने पर भी विभिन्न धर्मों के प्रति उदार थे।
Pandit Madan Mohan Malviya was very religious, tyagi, patriot and education lover. He was a great supporter and nurturer of Hindu religion and Hindu culture. He was an ideal man, humble and a true devotee of God. Even though he was a staunch supporter of Hinduism, he was liberal towards different religions.
पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म 1861 में प्रयाग में हुआ था। उनके पिता का नाम व्रजनाथ था। वे संस्कृत के एक अगाध विद्वान और एक धार्मिक व्यक्ति थे।
Pandit Madan Mohan Malviya was born in Prayag in 1861. His father’s name was Vrajnath. He was a profound scholar of Sanskrit and a religious person.
मालवीयजी बचपन से ही बड़े नटखट प्रकृति के थे । वे जब 15 वर्ष के थे तभी उनका विवाह हो गया था। संस्कृत के अध्ययन के पश्चात् उन्हें अंग्रेज़ी पढ़ने का शौक हुआ। लेकिन इसके लिए अपेक्षित धन सुविधा नहीं थी। आखिर उनकी माँ ने अपने हाथ के कड़े बेचकर, मालवीयजी की इच्छा पूरी की। 18 वर्ष की में मालवीयजी ने दसवीं परीक्षा पास कर ली। कॉलेज की पढ़ाई के बाद उन्होंने उसी स्कूल में नौकरी कर ली । वकालत की परीक्षा पास कर लेने के पश्चात् वे प्रयाग में वकालत करने लगे । युवा अवस्था से ही उनमें समाज सेवा और जन सेवा की भावना जागृत हुई थी। सरकारी नौकरी करते हुए उन्होंने देश सेवा का व्रत ले लिया ।
Malviyaji was very mischievous since childhood. He was married when he was 15 years old. After studying Sanskrit, he became fond of reading English. But there was no requisite funding facility for this. At last his mother fulfilled Malviyaji’s wish by selling her bracelets. At the age of 18, Malviyaji passed the tenth examination. After college, he got a job in the same school. After passing the examination of Advocacy, he started practicing in Prayag. From a young age, the spirit of social service and public service was awakened in him. While doing a government job, he took a vow to serve the country.
मालवीयजी का सबसे बड़ा महत्वपूर्ण और उपयोगी कार्य था काशी में हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना । अंग्रेज़ द्वारा स्थापित सभी संस्थाओं में अंग्रेज़ी भाषा, अंग्रेज़ी संस्कृति और अंग्रेज़ी साहित्य को विशेषतः महत्व दिया जाता था। भारतीय संस्कृति और सभ्यता की उपेक्षा की जाती थी। मालवीय जी ने भारतीय संस्कृति की रक्षा करने का कठिन व्रत लिया। इसके परिणामस्वरूप उन्होंने काशी में सन् 1916 में हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की। हिंदू विश्वविद्यालय भारत की सबसे बड़ी संस्था है। इसमें कला, विज्ञान, डाक्टरी, इंजिनियरिंग आदि सभी विषयों की पढ़ाई होती है। सारे भारतवर्ष के और विदेशों के भी छात्र यहाँ आकर शिक्षा प्राप्त करते हैं।
The most important and useful work of Malviyaji was the establishment of Hindu University in Kashi. In all the institutions established by the British, special importance was given to English language, English culture and English literature. Indian culture and civilization were neglected. Malviya ji took a difficult vow to protect Indian culture. As a result, he established the Hindu University in Kashi in 1916. Hindu University is the largest institution in India. In this, all the subjects like arts, science, medicine, engineering etc. are studied. Students from all over India and also from abroad come here and get education.
मालवीयजी सन् 1886 में कांग्रेस के साधारण सदस्य बने । सन् 1908 में वे लाहौर में कांग्रेस अधिवेशन के सभापति बने । सन् 1931 में महात्मा गाँधीजी के साथ गोल मेज कॉनफ्रेन्स (Round Table Conference) में भाग लेने इंग्लैंड गये ।
Malviyaji became an ordinary member of the Congress in 1886. In 1908, he became the President of the Congress session in Lahore. In 1931, he went to England to participate in the Round Table Conference with Mahatma Gandhi.
वे धार्मिक बातों में पुराने विचारों के समर्थक होने पर भी हरिजनों के प्रति बहुत उदार थे । मालवीयजी अजात शत्रु थे। उनके विरोधी भी उनकी निंदा नहीं करते थे । सदा प्रिय वचन बोलना, सबसे प्रेम करना और सबके कष्टों को सहानुभूति के साथ समझना उनका स्वभाव था । उनकी क्षमाशीलता असीम थी ।
He was very liberal towards the Harijans even though he was a supporter of old ideas in religious matters. Malviyaji was an unborn enemy. Even his opponents did not criticize him. It was his nature to always speak loving words, to love everyone and to understand everyone’s sufferings with sympathy. His forgiveness was limitless.
देश के राष्ट्रीय नेताओं में मालवीयजी का स्थान बहुत ऊँचा है। सभी वर्गों और दलों के लोग समान रूप से उनका आदर करते हैं। सन् 1946 में इस महान आत्मा ने अपना शरीर त्याग दिया। उनकी मृत्यु से सारे देश में शोक छा गया।
Malviyaji’s place is very high among the national leaders of the country. People of all classes and parties respect him equally. This great soul left his body in the year 1946. His death mourned the whole country.
भारतीयों के मानस में उनकी याद सदा रहेगी।
His memory will always remain in the minds of Indians.